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नज़्म
सरज़मीन-ए-हिन्द को जन्नत बनाने के लिए
कैसे कैसे दस्त-ओ-बाज़ू के शजर जाते रहे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
आसमाँ कितना ख़ूब-सूरत है
लेकिन ऐ शाहकार-ए-दस्त-ए-अज़ल जिस तरफ़ का तिरा इरादा है
इफ़्तिख़ार आज़मी
नज़्म
ग़रज़ चारों तरफ़ अब इल्म ही की बादशाही है
कि उस के बाज़ूओं में क़ुव्वत-ए-दस्त-ए-इलाही है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
मताअ'-ए-दस्त-ए-सबा हो कि नक़्श-ए-फ़र्यादी
हर एक ज़ख़्म में दर्द-ए-अवाम की ख़ुशबू
मसूद मैकश मुरादाबादी
नज़्म
ज़ुल्म है जौर-ओ-जफ़ा है हर तरफ़ बेदाद है
गर्दिश-ए-दस्त-ए-सितमगर से जहाँ बर्बाद है
टीका राम सुख़न
नज़्म
आह ये दस्त-ए-जफ़ा जो ऐ गुल-ए-रंगीं नहीं
किस तरह तुझ को ये समझाऊँ कि मैं गुलचीं नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय