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नज़्म
लब-ए-तिश्ना पे इक ज़हर-ए-हक़ीक़त का फ़साना है
अजब फ़ुर्सत मयस्सर आई है ''दिल जान रिश्ते'' को
जौन एलिया
नज़्म
रुलाता है तिरा नज़्ज़ारा ऐ हिन्दोस्ताँ मुझ को
कि इबरत-ख़ेज़ है तेरा फ़साना सब फ़सानों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ सूर-ए-हुब्ब-ए-क़ौमी इस ख़्वाब से जगा दे
भूला हुआ फ़साना कानों को फिर सुना दे
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
अभी तो काएनात औहाम का इक कार-ख़ाना है
अभी धोका हक़ीक़त है हक़ीक़त इक फ़साना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरी शामों की मलाहत मिरी सुब्हों का जमाल
मेरी महफ़िल का फ़साना मिरी ख़ल्वत का फ़ुसूँ