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नज़्म
मुझ से अब मेरी मोहब्बत के फ़साने न कहो
मुझ को कहने दो कि मैं ने उन्हें चाहा ही नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
से बढ़ के कौन सी शय और हो ही सकती है
इन्ही फ़सानों में पिन्हाँ थे ज़िंदगी के रुमूज़
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये पारीना फ़साने मौज-हा-ए-ग़म में खो जाएँ
मिरे दिल की तहों से तेरी सूरत धुल के बह जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कहाँ हैं वो कि जो ख़ुद को ख़ुदा समझते हैं
वो जो कि अम्न-ओ-अमाँ के फ़साने कहते हैं
शिफ़ा कजगावन्वी
नज़्म
सितारा-ए-सुब्ह की रसीली झपकती आँखों में हैं फ़साने
निगार-ए-महताब की नशीली निगाह जादू जगा रही है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मेरी शामों की मलाहत मिरी सुब्हों का जमाल
मेरी महफ़िल का फ़साना मिरी ख़ल्वत का फ़ुसूँ