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नज़्म
'कृष्ण' की बंसी ने फूंकी है रूह हमारी जानों में
'गौतम' की आवाज़ बसी है महलों में मैदानों में
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
भारत प्यारा देश हमारा सब देशों से न्यारा है
कृष्न की बंसी ने फूंकी है रूह हमारी जानों में
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
मुर्दा दिलों में अक्सर फूंकी है रूह तू ने
हम ने तिरी सदा की देखी है जाँ-फ़ज़ाई
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं उस लड़के से कहता हूँ वो शोला मर चुका जिस ने
कभी चाहा था इक ख़ाशाक-ए-आलम फूँक डालेगा
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वो इक मिज़राब है और छेड़ सकती है रग-ए-जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन फूँक सकती है गुलिस्ताँ को