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नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
देख बदला नज़र आता है गुलिस्ताँ का समाँ
साग़र ओ साज़ न ले, जंग के नारे हैं यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़माने की हवा बदली उधर रंग-ए-चमन बदला
गुलों ने जब रविश बदली अनादिल ने वतन बदला
सय्यद तसलीम हैदर क़मर
नज़्म
कि एक साए की नर्म आहट ने रास्तों का नसीब बदला
कोई तअल्लुक़ के चाँद लहजे में अपने-पन की अदा से बोला
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
न पूछ ऐ हम-नशीं कॉलेज में आ कर हम ने क्या देखा
ज़मीं बदली हुई देखी फ़लक बदला हुआ देखा