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नज़्म
न तुम मेरी तरफ़ देखो ग़लत-अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उन से जो कहने गए थे 'फ़ैज़' जाँ सदक़े किए
अन-कही ही रह गई वो बात सब बातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रस्ते में शहर की रौनक़ है इक ताँगा है दो कारें हैं
बच्चे मकतब को जाते हैं और तांगों की क्या बात कहूँ
मीराजी
नज़्म
दिए दिखाते हैं ये भूली-भटकी रूहों को
मज़ा भी आता था मुझ को कुछ उन की बातों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अपनी साँस के शोलों से गुलज़ार खिलाते गुज़री है
झूटी सच्ची बातों के बाज़ार सजाते गुज़री है
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
जवाँ हूँ मैं जवानी लग़्ज़िशों का एक तूफ़ाँ है
मिरी बातों में रंग-ए-पारसाई हो नहीं सकता