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नज़्म
क़िस्सा-ए-ग़ैब छिड़ा या सुख़न-ए-बूद-ओ-अदम
शम्अ' के गिर्द पतंगे थे कि मंडलाते रहे
सईदुल ज़फर चुग़ताई
नज़्म
देख कर बे-साख़्ता होता है दिल बेहद मगन
हर तरफ़ इक जल्वा-ए-शादाब-ए-हस्त-ओ-बूद है
चौधरी कालका प्रसाद ईजाद बिस्वानी
नज़्म
सलमान हैदर
नज़्म
फूलों पे रक़्स और न बहारों पे रक़्स कर
गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद में ख़ारों पे रक़्स कर
शकील बदायूनी
नज़्म
जिस्म और जाँ की तग-ओ-ताज़ की हर पुर्सिश में
दर्द-ओ-ग़म हसरत-ओ-महरूमी की हर काहिश में