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नज़्म
इसे मालूम हैं अच्छी तरह बेताबियाँ उस की
नहीं पोशीदा इस की आँख से बे-ख़्वाबियाँ उस की
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुझ रिंद-ए-हुस्न-कार की मय-ख़्वारियाँ न पूछ
इस ख़्वाब-ए-जाँ-फ़रोज़ की बेदारियाँ न पूछ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हिजाब-आलूद नज़रों में ज़रा बेबाकियाँ भर दे
लबों की भीगी भीगी सिलवटों को मुज़्महिल कर दे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
सिर्फ़ इक नुक़्ता-ए-बे-सुकूँ
मैं वो क़तरा कि जिस में समुंदर की बेताबियाँ मौजज़न हैं
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
माओं की ग़फ़लत से जब बच्चों को पहुँचेगा गज़ंद
जब फ़ुग़ाँ बे-तर्बियत औलाद की होगी बुलंद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़ितरत के उठे पर्दे सारे बेदार जहान-ए-राज़ हुआ
साहिल का सुकूँ धारे की तड़प बे-ताबियाँ मौज-ए-तूफ़ाँ की
अमीर औरंगाबादी
नज़्म
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
अगर शाइ'र कहें बे-क़ाफ़िया है लफ़्ज़-ए-बहनोई
मिरे बहनोई सर पर शाइ'रों के मारना डोई