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नज़्म
मक्का है या ज़मुर्रद तन कर खड़े हुए हैं
धानों की बालियों में हीरे जड़े हुए हैं
अब्र अहसनी गनौरी
नज़्म
''चौकी आँगन में बिछी वास्ती दूल्हा के लिए''
मक्के मदीने के पाक मुसल्ले पयम्बर घर नवासे
जौन एलिया
नज़्म
मकाँ फ़ानी मकीं फ़ानी अज़ल तेरा अबद तेरा
ख़ुदा का आख़िरी पैग़ाम है तू जावेदाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क्या मसनद तकिया मुल्क मकाँ क्या चौकी कुर्सी तख़्त छतर
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हज़ारों क़र्ज़ थे मुझ पर तुम्हारी उल्फ़त के
मुझे वो क़र्ज़ चुकाने का मौक़ा तो देते
ज़ुबैर अली ताबिश
नज़्म
वो मलका है ख़िराज उस ने लिए हैं बोस्तानों से
बस इक मैं ने ही अक्सर की हैं ना-फ़रमानियाँ उस की