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नज़्म
मीराजी
नज़्म
यहाँ की घाटियों में हुस्न के चश्मे उबलते हैं
यहाँ हर चीज़ पर जज़्बात-ए-इंसानी मचलते हैं
मयकश अकबराबादी
नज़्म
तो मुझ को हम-नशीं अपना लड़कपन याद आता है
कभी ख़ाली क्लासों में जो बच्चे ग़ुल मचाते हैं
शमीम करहानी
नज़्म
हर तरफ़ शोर है फ़रियाद है बर्बादी है
रू-ए-गर्दूं पे मचलते हुए तूफ़ाँ को देख
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर
गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
ये सीना-ए-अर्ज़ी पे मचलते हुए धारे
ज़िंदा हैं फ़क़त ज़ौक़-ए-तमव्वुज के सहारे