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नज़्म
देस परदेस के यारान-ए-क़दह-ख़्वार के नाम
हुस्न-ए-आफ़ाक़, जमाल-ए-लब-ओ-रुख़्सार के नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
लब-ओ-रुख़्सार को क़ौस-ए-क़ुज़ह के रंग देने की
अबस ख़्वाहिश में हम को ध्यान कब था कौन सी गठड़ी
अय्यूब ख़ावर
नज़्म
क़ाफ़िले क़ामत ओ रुख़्सार ओ लब ओ गेसू के
पर्दा-ए-चश्म पे यूँ उतरे हैं बे-सूरत-ओ-रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दिन में ये मल्गजे कपड़ों में नज़र आती है
रात में करती है आराइश-ए-ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार
सलाम संदेलवी
नज़्म
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
वो ल'अल ओ लब के तज़्किरे, वो ज़ुल्फ़ ओ रुख़ के ज़मज़मे
वो कारोबार-ए-आरज़ू वो वलवले, वो हमहमे
आमिर उस्मानी
नज़्म
तुम्हारे साया-ए-रुख़सार-ओ-लब में साग़र-ओ-जाम
सलाम लिखता है शाएर तुम्हारे हुस्न के नाम