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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आकाश के नीले मंडल पर जो तारों की गुल-कारी है
सज उस की क्या मन-लेवा है धज कैसी प्यारी प्यारी है