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नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मामा जी के रॉकेट पर हम चाँद की सैर को जाएँगे
वहाँ के बच्चों से मिल-जुल कर दूध मलाई खाएँगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अजीब शय हैं चचा हमारे नहीं किसी की समझ में आए
लिए हैं प्याले में मुर्ग़ छोले उसी में डाली है रस-मलाई
अब्दुल क़ादिर
नज़्म
हम खाते थे दूध मलाई सोच रहे हैं दादा जी
क्यों बच्चों ने मैगी खाई रूठ गए हैं दादा जी