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नज़्म
फिर हांडा है न भांडा है न हल्वा है न मांडा है
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हवा में तैरता ख़्वाबों में बादल की तरह उड़ता
परिंदों की तरह शाख़ों में छुप कर झूलता मुड़ता
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तुम पलट आओ गुज़र जाओ या मुड़ कर देखो
गरचे वाक़िफ़ हैं निगाहें कि ये सब धोका है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
गिला इस का नहीं क्यूँ तुम ने मुझ से अपना मुँह मोड़ा
शौकत परदेसी
नज़्म
वो जब हंगाम-ए-रुख़्सत देखती थी मुझ को मुड़ मुड़ कर
तो ख़ुद फ़ितरत के दिल में महशर-ए-जज़्बात होता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अपने प्यारों दिल-दारों का ओझल मुखड़ा ढूँडें
इस काली दीवार पे उन के नाम का टुकड़ा ढूँडें
अहमद फ़राज़
नज़्म
मुँह धो कर जब उस ने मुड़ कर मेरी जानिब देखा
मुझ को ये महसूस हुआ जैसे कोई बिजली चमकी है