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नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ईस्तादा सर्व के साए में थे मौला-ए-रूम
जिन के फ़र्मूदात में मुज़्मर हैं आयात-ए-मुबीं