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नज़्म
किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ का काशाना
तो क्या हम्द ओ सलाम ओ नात लिक्खूँ ये नहीं मुमकिन
सलाम मछली शहरी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ना कर देंगे अहल-ए-जब्र-ओ-इस्तिब्दाद की हस्ती
ज़मीं में दफ़्न रस्म-ए-जहल-ओ-वहशत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
बहीमियत और वहशत-ओ-जब्र का परस्तार भी वही है
ज़मीन पे क़ाबील के क़बीले की रस्म-ए-बे-दाद औज पर है
ज़िया जालंधरी
नज़्म
रस्म-ए-कोहना को तह-ए-ख़ाक मिलाने दे मुझे
तफ़रक़े मज़हब ओ मिल्लत के मिटाने दे मुझे