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नज़्म
अँधेरे को उजाले से जुदा करता है ख़ुद को मैं
अगर पहचानता हूँ उस की रहमत और सख़ावत है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
शम-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वो महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई लेकिन ज़मीं क़ाबिल न थी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सज़ा से बचने को झूटी क़सम भी खा न सका
वो माँ कि आयत-ए-रहमत है जिस की चीन-ए-जबीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे नेमत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
मग़्फ़िरत की तुझ पे मौला अब फ़रावानी करे
जन्नत-उल-फ़िरदौस में भी रहमत अर्ज़ानी करे
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
अब्र-ए-रहमत दामन-अज़-गलज़ार-ए-मन बर्चीद-ओ-रफ़त
अंदकै बर-ग़ुंचा हाए आरज़ू बारीद-ओ-रफ़्त
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हुक्मराँ दिल पर रहे सदियों तलक असनाम भी
अब्र-ए-रहमत बन के छाया दहर पर इस्लाम भी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
महफ़िल-ए-साक़ी सलामत बज़्म-ए-अंजुम बरक़रार
नाज़नीनान-ए-हरम पर रहमत-ए-परवरदिगार