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नज़्म
तेरी दुनिया में शगूफ़े हैं बहारों का शबाब
मुझ को काँटों से गुज़रना है रह-ए-हस्ती में
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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तेरी दुनिया में शगूफ़े हैं बहारों का शबाब
मुझ को काँटों से गुज़रना है रह-ए-हस्ती में
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