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नज़्म
तेरे होंटों पे तबस्सुम की वो हल्की सी लकीर
मेरे तख़्ईल में रह रह के झलक उठती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये लोग वो हैं कि जिन के यादों के कैनवस पर
विसाल-ए-मौसम की एक मुबहम लकीर भी तो नहीं बनी है