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नज़्म
मुझे था छोटे बड़ों से बहुत शदीद लगाव
हर एक पर मैं छिड़कता था अपनी नन्ही सी जाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़