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नज़्म
वो साहिरा कि लश्कर-ए-जमाल-ए-बा-कमाल उस के साथ था
वो साहिरा कि क़त्ल-ए-आम के तमाम असलहों से लैस थी
ख़ालिद मुबश्शिर
नज़्म
ज़र्द परचम उड़ाता हुआ लश्कर-ए-बे-अमाँ गुल-ज़मीनों को पामाल करता रहा
और हवा चुप रही
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
अभी हर दुश्मन-ए-नज़्म-ए-कुहन के गीत गाना है
अभी हर लश्कर-ए-ज़ुल्मत-शिकन के गीत गाना है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उफ़ुक़ पर ज़िंदगी के लश्कर-ए-ज़ुल्मत का डेरा है
हवादिस के क़यामत-ख़ेज़ तूफ़ानों ने घेरा है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अब वक़्त है दीदार का दम है कि नहीं है
अब क़ातिल-ए-जाँ चारा-गर-ए-कुल्फ़त-ए-ग़म है