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नज़्म
सुर्ख़ होंटों पर शरारत के किसी लम्हे का अक्स
रेशमीं बाँहों में चूड़ी की कभी मद्धम खनक
परवीन शाकिर
नज़्म
मैं ज़ेर-ए-साया-ए-उम्मीद जिस के बढ़ न सका
वो माँ मैं जिस से शरारत की दाद पा न सका
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तारिक़ क़मर
नज़्म
हर एक बग़ावत छोड़ी है हर एक शरारत रुख़्सत है
अब घर में फ़रिश्ते आते हैं शैतान ने आना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
सिर्फ़ इक काग़ज़ के पुर्ज़े से हुआ ये इंक़लाब
ख़ुद-ब-ख़ुद हर इक शरारत का हुआ है सद्द-ए-बाब
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
छीन लेती मेरी बीमारी ग़रज़ सब्र-ओ-सुकूँ
मैं शरारत भी अगर करता तो वो करती थी प्यार
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
तिरे क़ासिद से मिलते वक़्त मुझ को शर्म आती थी
मगर उस की निगाहों में शरारत मुस्कुराती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मुझे परिंदों की बोली क्यूँ समझ में आती है
मुझे शरारत करना क्यूँ भाता है अब तक