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नज़्म
रुसवा-बाज़ारी ख़ातूनें हक़्क़-ए-निसाई माँग रही हैं
सदियों की ख़ामोश ज़बानें सहर-ए-नवाई माँग रही हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रेस्तोराँ में सजे हुए हैं कैसे कैसे चेहरे
क़ब्रों के कत्बों पर जैसे मसले मसले सहरे
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
दूर मा'बद से बहुत दूर चमकते हुए अनवार की तमसील बने
आने वाली सहर-ए-नौ यही क़िंदील बने
नून मीम राशिद
नज़्म
दिल तेरे उस दोस्त का नाहक़ वक़्फ़-ए-सहर-ए-लिसानी था
मेरी समझ में अब आया वो जम-ओ-ख़र्च ज़बानी था
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो सारे ख़्वाब थे क़स्साब जो देखा किया हूँ मैं
ख़राश-ए-दिल से तुम बे-रिश्ता बे-मक़्दूर ही ठहरो
जौन एलिया
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ