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नज़्म
किसी ने ज़हर-ए-ग़म दिया तो मुस्कुरा के पी गए
तड़प में भी सुकूँ न था, ख़लिश भी साज़गार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
बे-तेरे क्या वहशत हम को, तुझ बिन कैसा सब्र ओ सुकूँ
तू ही अपना शहर है जानी तू ही अपना सहरा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
छोड़ कर आया हूँ किस मुश्किल से मैं जाम-ओ-सुबू!
आह किस दिल से किया है मैं ने ख़ून-ए-आरज़ू
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गो सुकूँ मुमकिन नहीं आलम में अख़्तर के लिए
फ़ातिहा-ख़्वानी को ये ठहरा है दम भर के लिए
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो छत जो घर का सबसे पुर-सुकूँ और प्यारा हिस्सा थी
किसे मा'लूम था वो ख़ुद-कुशी के काम आएगी
चराग़ शर्मा
नज़्म
मुझ को क्या इल्म था इख़्लास किसे कहते हैं
क्या है दरिया का सुकूँ प्यास किसे कहते हैं
बालमोहन पांडेय
नज़्म
ऐ मिरे नूर-ए-नज़र लख़्त-ए-जिगर जान-ए-सुकूँ
नींद आना तुझे दुश्वार नहीं है सो जा