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नज़्म
तबस्सुम ज़िया
नज़्म
सुहागन है तो उस की माँग में झूमर चमकता है
कुँवारी है तो उस के जिस्म से ख़ुशबू निकलती है
ओवेस अहमद दौराँ
नज़्म
थोड़ा थोड़ा ये जो सुहागन रंग इकट्ठा दिल में हुआ है
जाने कितने भेद निचोड़े नींद गँवाई प्यास चुराई
सलाहुद्दीन परवेज़
नज़्म
सुहागन चूड़ियों को तोड़ कर इक बम में भर देना
और अपनी माँग के सिंदूर को बारूद कर लेना
कुंदन अरावली
नज़्म
सो गई रास्ता तक तक के हर इक राहगुज़ार
अजनबी ख़ाक ने धुँदला दिए क़दमों के सुराग़