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नज़्म
तिरी जागीर में इरफ़ाँ की मस्ती है गुरु-नानक
तिरी तहरीर औज-ए-हक़-परस्ती है गुरु-नानक
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
हक़-परस्ती के तसव्वुर से हमेशा ख़ुश थे
कुफ़्र और शिर्क से बेज़ार गुरु-नानक थे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
नज़्म
कुफ्र-ओ-बातिल के उड़े हाथों के तोते ऐ 'चर्ख़'
हक़-परस्ती का वो यूँ डंका बजाता आया
चरख़ चिन्योटी
नज़्म
हक़-परस्ती के लिए जैसे वली उठते हैं
हिफ़्ज़-ए-दीं के लिए फ़रज़ंद-ए-'अली उठते हैं
गुलज़ार देहलवी
नज़्म
इक न इक दर पर जबीन-ए-शौक़ घिसती ही रही
आदमिय्यत ज़ुल्म की चक्की में पस्ती ही रही