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नज़्म
इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
पर्दा-हा-ए-ख़्वाब हो जाते हैं जिस से चाक चाक
मुस्कुरा कर अपनी चादर को हटा देती है ख़ाक
जोश मलीहाबादी
नज़्म
देखा तो एक दर में है बैठी वो ख़स्ता-हाल
सकता सा हो गया है ये है शिद्दत-ए-मलाल
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इक तरफ़ हाजत की शिद्दत इक तरफ़ ग़ैरत का जोश
नुत्क़ पर हर्फ़-ए-तमन्ना दिल में ग़ुस्से का ख़रोश