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नज़्म
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
भला क्या ए'तिबारी और क्या ना-ए'तिबारी है
गुमाँ ये है भला में जुज़ गुमाँ क्या था गुमानों में
जौन एलिया
नज़्म
इस इश्क़ न उस इश्क़ पे नादिम है मगर दिल
हर दाग़ है इस दिल में ब-जुज़-दाग़-ए-नदामत
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जुज़ इक ज़ेहन-ए-रसा कुछ भी नहीं फिर भी मगर मुझ को
ख़रोश-ए-उम्र के इत्माम तक इक बार उठाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ख़ूगर-ए-परवाज़ को परवाज़ में डर कुछ नहीं
मौत इस गुलशन में जुज़ संजीदन-ए-पर कुछ नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अब तुम आए हो तो मैं कौन सी शय नज़्र करो
कि मिरे पास ब-जुज़ मेहर ओ वफ़ा कुछ भी नहीं
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
है कुल की ख़बर उन को मगर जुज़ की ख़बर गुम
ये ख़्वाब हैं वो जिन के लिए मर्तबा-ए-दीदा-ए-तर हेच
नून मीम राशिद
नज़्म
जिस में जुज़ सनअत-ए-ख़ून-ए-सर-ए-पा कुछ भी न था
दिल को ताबीर कोई और गवारा ही न थी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जिस जगह हूरान-ए-जन्नत का किया है तज़्किरा
क्या कहा है और भी कुछ हम ने जुज़ हुस्न ओ हया
जोश मलीहाबादी
नज़्म
''ख़लल-पज़ीर बुअद हर बिना कि मय-बीनी
ब-जुज़ बिना-ए-मोहब्बत कि ख़ाली अज़-ख़लल-अस्त''
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़ुम-ए-साक़ी में जुज़ ज़हर-ए-हलाहल कुछ नहीं बाक़ी
जो हो महफ़िल में इस इकराम के क़ाबिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये पहले डर था हम को झाँक कर देखे न हम-साया
ब-जुज़ ख़ौफ़-ए-ख़ुदा दिन में ब-ज़ाहिर कुछ न था खाया