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नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़ाक-ओ-ख़ूँ में मिल रहा है तुर्कमान-ए-सख़्त-कोश
आग है औलाद-ए-इब्राहीम है नमरूद है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ज़ाओं में सँवारा इक हद-ए-फ़ासिल मुक़र्रर की
चटानें चीर कर दरिया निकाले ख़ाक-ए-असफ़ल से
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ख़ाक-ए-मरक़द पर तिरी ले कर ये फ़रियाद आऊँगा
अब दुआ-ए-नीम-शब में किस को मैं याद आऊँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अभी इम्काँ के ज़ुल्मत-ख़ाने से उभरी ही थी दुनिया
मज़ाक़-ए-ज़िंदगी पोशीदा था पहना-ए-आलम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त ब्रिज नारायण
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
तबाही की हवा इस ख़ाक-ए-रंगीं तक न आई थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जज़्ब होंगे अभी इस ख़ाक-ए-चमन में ऐ दोस्त
अश्क बन बन के गुहर-रेज़ा-ए-शबनम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
इक बहन अपनी रिफ़ाक़त की क़सम खाए हुए
एक माँ मर के भी सीने में लिए माँ का गुदाज़