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नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मग़रिब के मोहज़्ज़ब मुल्कों से कुछ ख़ाकी-वर्दी-पोश आए
इठलाते हुए मग़रूर आए लहराते हुए मदहोश आए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हो सदाक़त के लिए जिस दिल में मरने की तड़प
पहले अपने पैकर-ए-ख़ाकी में जाँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो कुछ नहीं है अब इक जुम्बिश-ए-ख़फ़ी के सिवा
ख़ुद अपनी कैफ़ियत-ए-नील-गूँ में हर लहज़ा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है
मनोज अज़हर
नज़्म
ज़बानों के रस में ये कैसी महक है
ये बोसा कि जिस से मोहब्बत की सहबा की उड़ती है ख़ुश्बू