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नज़्म
पत्थरों को ज़बाँ तो मिली पर तकल्लुम नहीं
पत्थरों को ख़द-ओ-ख़ाल-ए-इंसाँ मिले दौलत-ए-दर्द-ओ-ग़म कब मिली
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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पत्थरों को ज़बाँ तो मिली पर तकल्लुम नहीं
पत्थरों को ख़द-ओ-ख़ाल-ए-इंसाँ मिले दौलत-ए-दर्द-ओ-ग़म कब मिली