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नज़्म
मेरे सपने बुनती होंगी बैठी आग़ोश पराई में
और मैं सीने में ग़म ले कर दिन-रात मशक़्क़त करता हूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो मिसाल-ए-शम्अ रौशन महफ़िल-ए-क़ुदरत में है
आसमाँ इक नुक़्ता जिस की वुसअत-ए-फ़ितरत में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ेर-ए-लब अर्ज़ ओ समा में बाहमी गुफ़्त-ओ-शुनूद
मिशअल-ए-गर्दूं के बुझ जाने से इक हल्का सा दूद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
छाना दश्त-ए-मोहब्बत कितना आबला-पा मजनूँ की मिसाल
कभी सिकंदर कभी क़लंदर कभी बगूला कभी ख़याल