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नज़्म
तुम्हारी आप-बीती भी अभी तक ना-मुकम्मल है
इसे तो नाक़िदान-ए-फ़न ने सुनते ही सराहा है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मैं शाइ'र हूँ जो कि फ़ऊलुन फ़ऊलुन से बहर-ए-रमल तक
हर इक नग़मगी का मुकम्मल ख़ुदा हूँ
सोहैब मुग़ीरा सिद्दीक़ी
नज़्म
है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद
कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुकम्मल पा लिया उस को जो शह-रग में मचलता था
मुबारकबाद तो दे दो वो मेरा हो गया अब की
असरा रिज़वी
नज़्म
मुरक़्क़ा' है हसीं तहरीक-ए-अफ़्सानी के ख़ाकों का
मुकम्मल इज्तिमा-ए-गौहर-ए-अय्याम है उर्दू