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नज़्म
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
रात के अक्स-ए-तख़य्युल से मुलाक़ात हो जिस का मक़्सूद
कभी दरवाज़े से आता है कभी खिड़की से