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नज़्म
आकाश के नीले मंडल पर जो तारों की गुल-कारी है
सज उस की क्या मन-लेवा है धज कैसी प्यारी प्यारी है
ख़्वाजा दिल मोहम्मद
नज़्म
ज़र्रात का बोसा लेने को सौ बार झुका आकाश यहाँ
ख़ुद आँख से हम ने देखी है बातिल की शिकस्त-ए-फ़ाश यहाँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कलेजा फुंक रहा है और ज़बाँ कहने से आरी है
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज़ ये सरमाया-दारी है