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नज़्म
हो ढेर अकेला जंगल में तू ख़ाक लहद की फाँकेगा
उस जंगल में फिर आह 'नज़ीर' इक तिनका आन न झाँकेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ज़रा होंटों को जुम्बिश और लफ़्ज़ों को रिहाई दो
अकेला पड़ गया हूँ मैं ज़रा मेरी सफ़ाई दो
मनोज अज़हर
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
अकेले मैं तुम्हारी याद से बच कर कहाँ जाऊँ?
शौकत परदेसी
नज़्म
क्यूँ ऐसी सुनसान सड़क पर उसे अकेला छोड़ दिया
उस का दिल तो अच्छा दिल था जिस को तुम ने यूँ तोड़ दिया