aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "akkha.d"
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थेपाँव शेरों के भी मैदाँ से उखड़ जाते थे
कुछ ज़रा मुश्किल से खुलने वाला वो शीशम का दरवाज़ाकि जैसे कोई अक्खड़ बाप
शुऊर-ए-हिन्द के बचपन की यादगार-ए-अज़ीमकि ऐसे वैसे तख़य्युल की साँस उखड़ जाए
उखड़ गई साँस पत्तियों कीचली गईं ऊँघ में हवाएँ
बड़ पीपल आँब नीब छुआरा खजूर ताड़सब ख़ाक होंगे जब कि फ़ना डालेगी उखाड़
कि उन की बुनियाद उखड़ चुकी हैहवाएँ मस्मूम हो चुकी हैं
सुनकुछ पत्ते और पत्तों के साथ कुछ हवा उखड़ गई है
अक्सर नज़्म अकड़ जाती हैचलते चलते
दिलों के धागे उखड़ गए हैंशफ़ीक़ आँसू नहीं बचे हैं ग़मों के लहजे बदल गए हैं
वक़्त का चाक चल रहा हैज़मीन की साँस उखड़ रही है
कश्ती से लड़ रहे हैंतख़्ते उखड़ रहे हैं
दीवारों के पलसतर उखड़ जाता हैकाग़ज़, शोर करना भूल जाते हैं
सब कुछ उखाड़ के ले गयाक्या उसे भी?
अगर उम्मीदों के पेड़ पतझड़ की ज़द में हैंतो उन्हें जड़ों से उखाड़ फेंको
लेकिन मेरे पास वक़्त और हँसी कम हैबदन से दिल उखड़ गया है
यक़ीन की साँस उखड़ चली हैजमील ख़्वाबों के चेहरा-ए-ग़मज़दा से नासूर रिस रहा है
चाप के पाँवउखड़ गए थे
''कौन सितारे छू सकता हैराह में साँस उखड़ जाती है''
तमाम दुखड़े उखाड़ फेंकूँमैं चाहता हूँ कि आने वाले नए ज़माने की
कोई तो उन को उखाड़ फेंकेकोई तो हो जो तमाम दुनिया
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