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नज़्म
हुई फिर इमतिहान-ए-इशक़ की तदबीर बिस्मिल्लाह
हर इक जानिब मचा कुहराम-ए-दार-ओ-गीर बिस्मिल्लाह
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मिरे दोस्त
गर मुझे इस का यक़ीं हो कि तिरे दिल की थकन