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नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ता-अबद जिन के मुक़द्दर में थी दुनिया अंधेर
ये मगर अज़्मत-ए-इंसाँ है कि तक़दीर के फेर?
अहमद फ़राज़
नज़्म
कुछ देर नहीं अंधेर नहीं इंसाफ़ और अदल-परस्ती है
इस हाथ करो उस हाथ मिले याँ सौदा दस्त-ब-दस्ती है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुझ बिन जहाँ है आँखों में अंधेर हो रहा
और इंतिज़ाम-ए-दिल है ज़बर ज़ेर हो रहा
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
थी घटा छाई हुई अंधेर की वो छट गई
तेग़-ए-आज़ादी से ज़ंजीर-ए-ग़ुलामी कट गई
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
अंधेर है कैसा दुनिया में उस के क़ानून निराले हैं
या-रब ये कैसी दुनिया है कैसे ये दुनिया वाले हैं
अमीर चंद बहार
नज़्म
उल्टे क़दमों अब्बा के क़दमों पर चलते
आग उगलती आँखें ले कर मर्दाने हिस्से में पहुँचे