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नज़्म
अदू भी ज़िंदा है और मैं भी हूँ ब-क़ैद-ए-हयात
हैं आप के लिए गिर्या-कुनाँ नहीं मालूम
ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म
मुसलसल इरतक़ा-ए-आदमियत इस से मज़हर है
ब-क़ैद-ए-नुत्क़-ए-'माजिद' रहबर-ए-अक़्वाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
अभी कुछ ऐसे ग़य्यूर-ओ-सादिक़ ब-क़ैद-ए-जाँ हैं
कि हर्फ़-ए-इंकार जिन की क़िस्मत नहीं बना है
परवीन शाकिर
नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
निज़ाम-ए-शमस-ओ-क़मर में पयाम-ए-हिफ़्ज़-ए-हयात
ब-चश्म-ए-शाम-ओ-सहर मामता की शबनम सी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मुंहदिम हो जाएगा दीवार-ए-ज़िंदाँ ख़ुद-ब-ख़ुद
अहल-ए-ज़िंदाँ क़ैद-ए-मेहनत से रहा हो जाएँगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
जिसे क़ैद-ओ-बंद के मरहले न रह-ए-वफ़ा से हटा सके
ब-हमा शक़ावत-ए-दुश्मनाँ भी पयाम-ए-सिद्क़-ओ-सफ़ा दिया
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
ब-ईं इनआम-ए-वफ़ा उफ़ ये तक़ाज़ा-ए-हयात
ज़िंदगी वक़्फ़-ए-ग़म-ए-ख़ाक-नशीनां कर दे