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नज़्म
नाराज़ किस लिए हो ख़ामोश किस लिए हो
अहबाब-ए-बा-वफ़ा से रू-पोश किस लिए हो
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
तिरा गुम-गश्ता बादल हूँ समंद-ए-बाद-पा हूँ मैं
तिरी मौज-ओ-क़लम हूँ अंदलीब-ए-बा-वफ़ा हूँ मैं
हसन समी क़ैस
नज़्म
दिखाना है कि लड़ते हैं जहाँ में बा-वफ़ा क्यूँकर
निकलती है ज़बाँ से ज़ख़्म खा कर मर्हबा क्यूँकर