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नज़्म
दिखाना है कि लड़ते हैं जहाँ में बा-वफ़ा क्यूँकर
निकलती है ज़बाँ से ज़ख़्म खा कर मर्हबा क्यूँकर
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
नाराज़ किस लिए हो ख़ामोश किस लिए हो
अहबाब-ए-बा-वफ़ा से रू-पोश किस लिए हो