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नज़्म
कुछ पिएँ और कुछ बचाएँ तिश्ना-कामों के लिए
सादगी का नाज़ भी अंदाज़-ए-पुरकारी भी हो
अर्श मलसियानी
नज़्म
ता-साल ये लाज़िम है कि मेहनत से कमाएँ
कुछ नेक-ओ-बद अय्याम की ख़ातिर भी बचाएँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
चलो हम भी कुछ हाथ पाँव हिलाएँ
ज़मीं पर उतरती हुई बर्फ़ के सर्द बोसों से ख़ुद को बचाएँ
वज़ीर आग़ा
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो