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नज़्म
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
क़वानीन-ए-अख़्लाक़ के सारे बंधन शिकस्ता नज़र आ रहे हैं
हसीन और ममनूअ झुरमुट मिरे दिल को फुसला रहे हैं