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नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वो कौन था जिस का दिल हुआ ज़ार-ज़ार ऐसा
तुम्हें भुलाने की कोशिशों में ये आख़िरी दिन है जान या'नी
पीयूष शर्मा
नज़्म
जिस की उल्फ़त में भुला रक्खी थी दुनिया हम ने
दहर को दहर का अफ़्साना बना रक्खा था