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नज़्म
बन बन कर जो खेल बिगड़ जाते हैं उन की बात नहीं
कोई जनाज़ा भी ये नहीं है और कोई बारात नहीं
मीराजी
नज़्म
छोड़ा है जब से इस को तलफ़्फ़ुज़ बिगड़ गया
ये हर ज़बाँ का जुज़्व-ए-बयाँ और शान है