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नज़्म
चलो अब दुआ करो नज़्में पढ़ो विसाल की सब आयतें पढ़ो
क्या रह गया है शाम का अब रात से फ़राग़
असलम इमादी
नज़्म
खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब
हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
अम्बर बहराईची
नज़्म
दे रही है लुत्फ़ गुल-मेहंदी की हर जानिब क़तार
इस की हर हर शाख़ पर हैं फूल बेहद बे-शुमार