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नज़्म
खेलता था जब लड़कपन से तिरा रंगीं शबाब
हट रही थी माह-ए-आलम-ताब के रुख़ से नक़्क़ाब
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
रोज़-ए-रौशन जा चुका, हैं शाम की तय्यारियाँ
उड़ रही हैं आसमाँ पर ज़ाफ़रानी साड़ियाँ