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नज़्म
मिज़ाजन रोज़ा-दार-ए-शाम बारूद और गंधक हैं
और उन में नज़्म और ज़ब्त और रवा-दारी यहाँ तक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तदब्बुर की फ़ुसूँ-कारी से मोहकम हो नहीं सकता
जहाँ में जिस तमद्दुन की बिना सरमाया-दारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं ने मुनइ'म को दिया सरमाया दारी का जुनूँ
कौन कर सकता है इस की आतिश-ए-सोज़ाँ को सर्द
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
छाई है जो अब तक धरती पर उस रात से लड़ते आए हैं
दुनिया से अभी तक मिट न सका पर राज इजारा-दारी का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
कल वो मिली जो बचपन में मेरे भाई से खेला करती थी
जाने तब क्या बात थी उस में मुझ से बहुत ही डरती थी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
कलेजा फुंक रहा है और ज़बाँ कहने से आरी है
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज़ ये सरमाया-दारी है