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नज़्म
और कुछ देर में जब फिर मिरे तन्हा दिल को
फ़िक्र आ लेगी कि तन्हाई का क्या चारा करे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरे पहलू-ब-पहलू जब वो चलती थी गुलिस्ताँ में
फ़राज़-ए-आसमाँ पर कहकशाँ हसरत से तकती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो हर्फ़ जो फ़ज़ा-ए-नीलगूँ की वुसअ'तों में क़ैद था
वो सौत जो हिसार-ए-ख़ामुशी में जल्वा-रेज़ थी
ज़ाहिदा ज़ैदी
नज़्म
फिर चली है रेल स्टेशन से लहराती हुई
नीम-शब की ख़ामुशी में ज़ेर-ए-लब गाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
घर ऐ दिल-ए-बे-क़रार ज़िंदाँ से कम नहीं क़ैद कौन काटे
हसीन सरमा का चाँद दीवाना-वार को बुला रहा है