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नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
झूटे टुकड़े खा के बुढ़िया तपता पानी पीती थी
मरती है तो मर जाने दो पहले भी कब जीती थी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मिरी तन्हाइयो तुम ही लगा लो मुझ को सीने से
कि मैं घबरा गया हूँ इस तरह रो रो के जीने से